इस वर्ष जून माह में गरर्मियों की छुट्टियों में माँ कामख्या के दर्शन के लिए गोहाटी जाना हुआ. पूजा अर्चना के बाद जब हम वहां से चलने लगे तो पंडितजी ने कहा की आप लोग सही समय पर आयें हैं अगर एक हफ्ते बाद आये होते तो माँ के दर्शन नहीं हो पाते क्योंकि आषाढ़ माह में अम्बुबाचि मेले के दौरान मंदिर के कपाट तीन दिनों तक बंद रहता है.इस मेले के विषय और उससे सम्बंधित जानकारी आप लोगों से साझा करना चाहूंगी.
अम्बुबाचि शब्द “अम्बु” और “बाचि” दो शब्दों को मिलाकर बना है , जिसमे “अम्बु “का अर्थ पानी और “बाचि” का अर्थ है उत्फूलन. यह शब्द स्त्रियों की शक्ति और उनके जन्म क्षमता को दर्शाता है. यह मेला उस समय लगता है जब माँ कामख्या ऋतुमती रहती हैं . अम्बुबाचि योग पर्व के दौरान माँ भगवती के गर्भ गृह के कपाट स्वत ही बंद हो जाते हैं . तीन दिनों के बाद माँ भगवती की विशेष पूजा व साधना की जाती है. चौथे दिन ब्रह्म मुहूर्त में देवी को स्नान करवाकर श्रींगार के उपरान्त ही मंदिर श्रधालुओं के लिए खोला जाता है.

भूविज्ञान के वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझें तो आसाम के मिटटी में प्राकृतिक रूप से उच्च लौह तत्व होता है जो पानी का रक्त रंग बनता है. कामख्या मंदिर के पहाड़ में सिनेबार (मर्कुरिक सल्फाइड ) प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. तथ्य के रूप में खनिज सिनेबार को शक्ति पूजा के साथ सबसे महत्वपूर्ण से जोड़ा जाता है, जिसमें दो सबसे महत्वपूर्ण तीर्थस्थल – कामख्या और हिंगलाज (पाकिस्तान में ) सिनेबार जमा वाले क्षेत्रों में स्थित है. अम्बुबाचि मेले के समय ब्रहमपुत्र नदी अपने मौसमी बाढ़ की शुरुआत करती है. लोहे की समृद्ध नदी जब भूमिगत गुफा में पहुंचती है जो की मर्कुरिक सल्फाइड से भरी रहती है तब नदी का जल पूर्ण रूप से रक्त लाल हो जाता है .परन्तु सवाल यह उठता है की केवल तीन दिन ही ब्रहमपुत्र नदी का पानी रक्त लाल क्यों होता है , बाकी बाढ़ के दिनों में क्यों नहीं?
यह एक धर्म भी है , धर्म से जुड़ा रहस्य भी है और भूविज्ञान भी.
यदि आप लोगों में से कोई इस विषय में और भी जानकारी साझा करना चाहें तो आप सभी का स्वागत है.
Madam
जवाब देंहटाएंGayi to m bhi Guwahati hun par itni achchi jankari wahan jakar bhi nahee mili
बहुत सुन्दर एवं जिज्ञासापूर्ण जानकारी दी है दी... साधुवाद
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