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गुरुवार, 2 मई 2019

श्री कृष्ण की बांसुरी


भगवान श्रीकृष्ण की बांसुरी
भगवान कृष्ण की कल्पना वो भी बिना मोरपंख व बांसुरी के ! शायद ही किसी ने ऐसी कल्पना 
की हो.  एक कला प्रदर्शनी में एक पेंटिंग पर नज़र अटक गयी जिस में कृष्ण जी को गिटार के साथ 
 प्रदर्शित किया गया था. कुछ अजीब सा लगा, उस कलाकार से यह प्रश्न किया कि भगवान कृष्ण जी
 तो  बांसुरी  बजाते थे फिर ये गिटार क्यों ? पता नहीं, लेकिन मुझे गिटार पसंद है इसलिए पेंटिंग 
बना दिया और  क्या फर्क पड़ता है ,दोनों ही वाद्ययंत्र हैं. गिटार बजाना, या किसी वाद्य यंत्र का 
मन और शरीर पर शांत प्रभाव पड़ता है. प्रश्न का उत्तर तो लाजवाब था पर मन में श्री कृष्ण की
 बांसुरी के विषय में जानने की उत्सुकता बढ़ गयी.
भगवान श्रीकृष्ण के अदभुत व्यक्तित्वों में से एक, उनकी बांसुरी की धुन  से सभी को आकर्षित
 करने की उनकी क्षमता थी. सृजन की शक्ति उनकी बांसुरी के माध्यम से व्यक्त की जाती है। 
श्री कृष्ण के साथ नाद या शब्द  का पूर्ण अवतार उनके वेणु रूप में हुआ. श्री कृष्ण की वंशी का
 मधुर निनाद ही नादावातार था. पूरी तरह से बांस से बना बांसुरी मानव जाति के लिए ज्ञात सबसे 
पुराना संगीत वाद्ययंत्र है। बांसुरी एक मात्र ऐसा वाद्ययंत्र है जिसकी पूरी तरह से प्राकृतिक ध्वनि है.
 बांसुरी सादगी और बहुत मधुर ध्वनि का प्रतिनिधित्व करती है.
 बांसुरी के बारे में खोज बीन करते हुए समझ में आया कि  श्री कृष्ण तीन तरह की बांसुरी बजाते थे—वेणु , मुरली व वंशी . वेणु की लम्बाई करीब छह इंच की होती है जिसमे नौ छेद होतें हैं.मुरली लगभग अठारह इंच लम्बी होती है जिसमे सात छेद होतें हैं.वंशी की लम्बाई लगभग पन्द्रह इंच होती है जिसमे बारह छेद होतें हैं. ये कहा जाता है कि कृष्ण जी गोपियों और राधा रानी को आकर्षित करने के लिए वेणु बजाते थे , मुरली का उपयोग गायों को आकर्षित करने के लिए और वंशी पेड़ , नदियों ,जंगलों आदि को आकर्षित करने के लिए.
 बांसुरी बजाने की कला पर ध्यान दें तो बांसुरी की ध्वनि वायु की एक स्थिर धारा से होती  है जो उसके माध्यम से कम्पन करती है . छेद के पार  हवा की धारा बांसुरी के गुंजायमान गुहा के अन्दर हवा को उत्तेजित करती है, जिससे यह कम्पन होता है और एक ध्वनि बनता है. पूरे उपकरण में मुखपत्र का स्वर गूंजता है, बांसुरी की पिच वाद्य के आकार से निर्धारित होती है .
बांसुरी जितनी बड़ी होगी ,यंत्र की पिच उतनी ही गहरी होगी  क्योंकि बड़ी वस्तुएं अधिक धीमी गति से कम्पन करती हैं. इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो समझा जा सकता है की तीन अलग अलग तरह की बांसुरी का उपयोग श्री कृष्ण क्यों करते थे. बांसुरी से विविध रूप से  मधुर संगीत की अभिव्यति की जा सकती है.
 स्वास्थलाभ की दृष्टी से देखा जाए तो बांसुरी सुनाने या बजने से कई महत्वपूर्ण स्वास्थ्य लाभ भी होता है. इसे बजाने से शरीर में उर्जा का बेहतर प्रवाह होता है और सकारात्मक प्रभाव प्रदान करता है. इसे बजाने के दौरान की जाने वाली नियमित सांस की गति प्राणायाम श्वास करियों के सामान है.यह सांस लेने की गति में सुधार करता है . नियमित रूप से  बांसुरी बजने से ब्रोंकईटिस का खतरा कम हो जाता है. इस यन्त्र को बजाने से एकाग्रता बढ़ती है . कुल मिलाकर यह हमारे शरीर पर सकारात्मक प्रभाव प्रदान करता है। बंसुरी बजाना ध्यान से  भी जोड़ा गया है। अध्ययन बताते हैं कि संगीत न केवल तनाव को कम करता है, बल्कि यह रक्तचाप के स्तर को भी कम करने में मदद करता है।
  श्री कृष्ण की कल्पना उनकी  मनमोहिनी, सम्मोहिनी,अनंदिनी बांसुरी के बिना तो किया भी नहीं जा सकता है.बाकी रही कलाकार की कल्पना, उसकी  पहुँच की कोई सीमा तो तय नहीं है.

IIइतिII

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