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सोमवार, 20 मई 2019

हमारी तुलसी




स्वीट बेसिल हमारी तुलसी नहीं हो सकती




हम अपनी परम्पराओं को मानें  तो तुलसी को लक्ष्मी के अवतार में पूजा जाता है. श्री विष्णु को प्रिय होने की वजह से तुलसी को “हरिप्रिया” भी कहा जाता है. परंपरागत रूप से तुलसी को घर के आँगन में लगाया जाता है. कोई समय था जब तुलसी का चौरा यदि घर के आँगन में न हो तो घर आँगन  कुछ अधूरा सा लगता था. . कहा जाता है की तुलसी को घर के आँगन में या बाहर  ही लगाया जाना चाहिए . तुलसी स्वाभाविक रूप से उष्णकटिबंधीय या उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पायी जाती है. तुलसी ठण्ड के प्रति बहुत संवेदनशील होती है . कड़ी धूप में तुलसी की बढ़त बहुत ही अच्छी तरह से होती है. यही वजह है की तुलसी को घर के आँगन या बाहर रखने की परंपरा बन गयी .वैसे तुलसी को घर के अन्दर भी रखा जा सकता है.
अब शहरों में  जगह की कमी या फ्लैट सिस्टम होने की वजह से तुलसी का चौरा आँगन से सिमट कर बालकनी में भले ही आ गया हो पर आज भी तुलसी की उपयोगिता  वैसी ही बनी हुई है. किसी को  जुखाम हो तो  काली मिर्च के साथ , खांसी हो तो  अदरक के साथ, बुखार हो तो  शहद के साथ, सांस लेने में तकलीफ हो तो हल्दी के ................. एक लम्बी लिस्ट बन जाएगी. तुलसी के पत्तों से लेकर जड़ तक का उपयोग होने के कारण आयुर्वेद में इसे जीवन का अमृत माना जाता है.
बचपन में जब परीक्षा देने जाते थे तो हम सभी तुलसी के  पत्ते  मुहँ में रख लेते थे या गटक जाते थे. शायद ....हम सभी लोग. तुलसी की पत्तियों  को दाँतों से चबाना नहीं चाहिये ,ऐसा  घर के बड़े कहते थे.बहुत बाद में समझ में आया की तुलसी में आयरन और मरकरी काफी अधिक मात्र में पाया जाता है और पत्तियों को चबाने से दाँतों की उपरी परत  (enamel) क्षतिग्रस्त हो सकती है.
मंदिर में प्रभु दर्शन के समय पुजारी जी अपनी छोटी सी ताम्बे की लुटिया से चरणामृत सभी श्रद्धालुओं को देतें हैं जिसमे तुलसी के पत्ते भी दिखाई देतें हैं ,जिसे सभी श्रद्धालु बड़ी श्रद्धा से अपने दाहिनी हथेली में ले कर उसका सेवन करतें हैं.  तांबे के बर्तन में जल रखने से तांबे के औषधीय गुण तो आ ही जाते हैं और फिर तुलसी पत्ता उसी जल में डाल दिए जाएँ तो सोने पे सुहागा,स्वस्थ लाभ के साथ साथ यह जल मस्तिष्क को शांति प्रदान करता है और बुद्धि, स्मरण शक्ति को भी बढानें में भी कारगर होता है. 
आजकल के भागम भाग जिंदगी में सबसे ज्यादा जगह स्ट्रेस ने और योग ने ले ली है . यदि योग- ध्यान हम तुलसी के बाग़ में करें तो कहा जाता है की स्ट्रेस नौ दो ग्यारह हो जाता है . कैसे ?तुलसी के पौधे सबसे अधिक मात्रा में ऑक्सीजन बनाते हैं  और एक विशेष प्रकार की वाष्प तुलसी के पौधे द्वारा हवा में छोड़ा जाता है जो वायुमंडल को शुद्ध करता है .यह वास्तव में  तुलसी के पौधे में मौजूद एक असेंसिअल खुशबुदार आयल होता है जो वाष्पित हो हवा के माध्यम से फैलता है और बैक्टीरिया एवं अन्य पदार्थों से वायु को मुक्त करता है जो रोगों का कारण बनतें हैं. तुलसी के पौधे के पास रखने से चीजे आसानी से खराब नहीं होती हैं. तुलसी के पौधों के बीच रखने पर मृत शरीर भी तेजी से नहीं सड़ते .जीवाणुरोधी गुण और पत्तियों की विद्युत् ऊर्जा संग्रहित भोजन सामग्रियों को ग्रहण के दौरान प्रकाश विकिरण के प्रतिकूल प्रभाव से रक्षा करती हैं.
एक दिन टेलीवीजन पर फूड्स चैनल पर इतालवी कैमप्रेस  सलाद में टमाटर और मोजरेला के साथ बेसिल के पत्तों से सजावट की बात की जा रही थी जिससे उसकी खुशबू और स्वाद अलौकिक हो जाता  है.  सभी को मालूम है कि इतालियन या थाई भोजन में बेसिल का उपयोग किया जाता है .बेसिल क्या  होता है? बेसिल को जब गूगल किया तो बेसिल यानी तुलसी बताया गया. लेकिन दूर दूर तक मुझे याद नहीं की घर में कभी किसी व्यंजन में माँ ने तुलसी के पत्तों का उपयोग किया हो .हाँ, घर में चरणामृत ,पंचामृत ,प्रसाद में या फिर ग्रहण के समय भोजन में तुलसी के पत्तों का प्रयोग होते देखा है.
 तुलसी के अर्क का उपयोग आयुर्वेदिक उपचार में आम सर्दी, सिर दर्द, पेट की खराबी, सूजन, हृदय रोग, विभिन्न प्रकार के विषाक्तता और मलेरिया के लिए किया जाता है। परंपरागत रूप से, तुलसी को कई रूपों में लिया जाता है: हर्बल चाय के रूप में, सूखे पाउडर, ताज़ी पत्ती, या घी के साथ मिश्रित। कर्पूर तुलसी से निकाले गए आवश्यक तेल का उपयोग ज्यादातर औषधीय प्रयोजनों के लिए और हर्बल सौंदर्य प्रसाधनों में किया जाता है.
दुनिया भर में हमारी तुलसी को “होली बेसिल” और थाई व्यंजनों में प्रयोग किये जाने वाली तुलसी को “स्वीट बेसिल” कहते हैं. तुलसी में ओलेअनोलिक एसिड ,उर्सोलिक एसिड, रोस्मारिनिक एसिड, यूगेनोल , कार्वक्रोल, लिनालूल , बीटा-कार्योफैलोन जिनकी वजह से यह आयुर्वेदिक औषधि के रूप में प्रयोग में लायी जाती है. स्वाद में तीखी और कड़वी होती है पर स्वीट बेसिल में लौंग की तेज गंध होती है और स्वाद में चटपटी होती  है . और यह चटपटी बेसिल हमारी तुलसी से बिलकुल अलग है.

तुलसी के सानिध्य में रहने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार बढ़ने लगता है और सभी तरह के नकारात्मक विचारों का नाश होता है.
II महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्य वर्धिनी
आधि व्याधि जरा मुक्तं तुलसी त्वां नमो स्तुते II



9 टिप्‍पणियां:

  1. आज समझ आया तुलसी की पत्ती को चबाना क्यों नहीं चहिये।🙏

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  2. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. Tulsi leaves se daant kharab hone ka reson aaj aapka rochak lekh padh ker gyat hua.
    Madhu bhutani

    जवाब देंहटाएं

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