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मंगलवार, 14 मई 2019

अद्भुत व विशिष्ट कुश घास

अद्भुत व विशिष्ट कुश घास 
               
कुम्भ मेले में बहुत से शिल्पकारों के  कला की नुमाइश लगी थी ,उनमे से एक जगह “ऋतु रग्स”
भदोही , की  घास की बनी  हुए  चटाईयां ,आसन , रनर ,कोस्टर आदि  लोगों द्वारा काफी पसंद की जा रहीं थी. पूछने पर बताया गया की यह इको फ्रेंडली  कुश घास से बनी है. कुश घास से फिर याद आया की पंडितजी पूजा शुरू करने से पहले इसी कुश घास की नोक को जल में भिगो कर चारों तरफ उस स्थान को शुद्ध करने के लिए घर या मंदिर में  छिड़कते हैं और धार्मिक अनुष्ठानों व  हवन में वैदिक मंत्रो के उच्चारण के समय यजमान के दाहिने हाथ की अनामिका में कुशा घास की बनी पैंती (अंगूठी) भी पहनाई जाती है. ऐसा क्यों किया जाता है ? जवाब – क्योकि यह एक पवित्र घास है . कैसे ? कोई जवाब नहीं. आज इसी अद्भुत व विशिष्ट कुशा घास के वैज्ञानिक तथ्यों के बारे में बात करेंगे.

कुशा घास को  Desmostachya bipinnata के नाम से जाना जाता है. कुश की खेती हर जगह नहीं की जाती है, लेकिन यह प्राकृतिक रूप से चुनिंदा स्थानों में उगती है और उत्तर-पूर्व और पश्चिम उष्णकटिबंधीय, और उत्तरी अफ्रीका (अल्जीरिया, चाड, मिस्र, इरिट्रिया, इथियोपिया, लीबिया, मॉरिटानिया, सोमालिया, सूडान और ट्यूनीशिया) में उपलब्ध है; और मध्य पूर्व में देशों, और समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय एशिया (अफगानिस्तान, चीन, भारत, ईरान, इराक, इजरायल, म्यांमार, नेपाल, पाकिस्तान, सऊदी अरब, थाईलैंड) में.
 यह एक पुरानी विश्व बारहमासी घास है , जिसे लम्बे समय से मानव इतिहास में जाना जाता है और इसका उपयोग किया जाता रहा है. इस घास  का उल्लेख ऋग्वेद में पवित्र समारोहों में उपयोग के लिए किया गया है  जिसमे पुजारियों एवं देवताओं के लिए कुश का आसन प्रयोग होता था.
बोधि वृक्ष के नीचे बुद्ध द्वारा कुश के आसान पर बैठ कर ज्ञान प्राप्त करने का उल्लेख बौद्ध खातों में मिलता है. श्री कृष्ण ने  कुश के आसन को ध्यान के लिए आदर्श आसन के रूप में माना है.  ऐसा माना जाता है की ध्यान के दौरान हमारे शरीर से ऊर्जा  उत्पन्न होती है . यदि हम कुश के आसन  पर बैठ कर ध्यान करें तो वह उर्जा पैर और पैर की उँगलियों के माध्यम से जमीन / धरती में जज्ब नहीं हो पाती  है.
हवन के दौरान  सभी नकारात्मक विकिरणों को रोकने में मदद के लिए कुश घास को आग के चारों तरफ रखा जाता है क्योंकि यह गर्मी और ताप /अग्नि  के बुरे संवाहक (bad conductor) होते हैं. हाल ही में चिकित्सा अनुसंधान में , कुशा घास में एक्स- रे विकिरण को अवरूध करने की क्षमता देखी गयी  है. इसकी नोक से ध्वन्यात्मक स्पंदनो को संचालित करने की विशेष क्षमता होती है. इसी वजह से पुजारी कुश घास की नोक को जल में भिगो कर पूजा पाठ के स्थान को शुद्ध करने के लिए जल का छिडकाव करतें हैं.
 पारंपरिक उष्णकटिबंधीय घास, कुश को एक पर्यावरण-अनुकूल भोजन परिरक्षक के रूप में पहचाना गया है। ग्रहण के समय ,कुश घास को पानी और भोजन के पात्रों पर रखा जाता था ताकि ग्रहण से किरणों के नकारात्मक प्रभाव उन्हें खराब न कर सके. ग्रहण के दौरान, पृथ्वी की  सतह पर उपलब्ध प्रकाश विकिरणों की तरंगदैर्ध्य और तीव्रता में परिवर्तन हो जाता है। विशेष रूप से, नीले और पराबैंगनी विकिरण, जो अपनी प्राकृतिक कीटाणुशोधन संपत्ति के लिए जाने जाते हैं, ग्रहण के दौरान पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं  होतें हैं। ग्रहण के समय, लोग उस घास को खाद्य पदार्थों में डालते थे जिनमे किण्वित (Fermentation) हो सकती हैं और एक बार ग्रहण समाप्त होने के बाद घास को हटा दिया जाता है.  ग्रहण के दौरान खाद्य उत्पादों में सूक्ष्म जीवों की अनियंत्रित वृद्धि होती है और खाद्य उत्पाद उपभोग के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं।  कुश घास  का उपयोग  ऐसे विशिष्ट अवसरों पर एक प्राकृतिक कीटाणुनाशक के रूप में किया जाता था,ऐसा शोधकर्ताओं का कहना  है।
SASTRA विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा एक व्यवस्थित शोध किया गया, जिसमें गाय के दूध की दही को एक खाद्य पदार्थ के रूप में चुना गया जिसमें आसानी से किण्वन (fermentation)की प्रक्रिया हो सकती है.
पांच अन्य उष्णकटिबंधीय घास की प्रजातियां, जिनमें लेमन ग्रास, बरमूडा घास और बांस शामिल हैं, को एंटीबायोटिक गुणों और हाइड्रो फोबिसिटी के विभिन्न स्तरों के आधार पर तुलना के लिए चुना गया था. दही के सूक्ष्म जीव समुदाय (lectobacillus bacteria) पर विभिन्न घासों के प्रभाव का अध्ययन करने पर ,केवल कुश घास के पदानुक्रमित सतह में बैक्टीरिया की भारी संख्या में आकर्षित करने की विशेषता पायी गयी .
इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोपी द्वारा विभिन्न घासों के नैनो –पैटर्न और पदानुक्रमित सूक्ष्म संरचनाओं की जांच में  कुश घास में अदभुत नैनो –पैटर्न व पदानुक्रमित सूक्ष्म संरचना पायी गयी जो अन्य घासों में नहीं थी.   इसके अलावा, वैज्ञानिकों का कहना है कि कुश घास  को हानिकारक रासायनिक परिरक्षकों के स्थान पर प्राकृतिक खाद्य परिरक्षक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.
SASTRA विश्वविद्यालय, थंजावुर के डा. पी.मीरा  और डा. पी. ब्रिन्धा के पर्यवेक्षण में यह खोज सेंटर फार नैनोटेक्नोलाजी एंड एडवांस्ड बायोमेटरिअल्स (CNTAB) और सेंटर फार एडवान्स्ड रीसर्च इन इंडियन सिस्टम आफ मेडिसिन (CARISM) के संयुक्त  तत्वाधान में  विकसित की गयी थी.

                    II  कुश घास का उपयोग  हमारी ऊर्जा को   संरक्षित करता है II

इस ब्लॉग में आप सभी लोगों के सुझाव आमंत्रित हैं ,कृपया अपने विचार एवं सुझाव साझा करें.

8 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. धन्यवाद निशा मैम, आप कुछ सुझाव भी देती तो मुझे और अच्छा लगता.

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  2. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. राजस्थान के चूरू में कुश घास कहाँ मिलेगी

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